मोल्ठी


३१ अक्टूबर को मोल्ठी जाने का प्लान बना। उधर नाना जी रहते हैं। मुझे उधर गये हुए काफी वक्त भी हो गया था। सुबह उठा और जॉगिंग के लिए गया। फिर आकर तैयार हुआ और मोल्ठी के लिए निकला। मोल्ठी जाने के लिये हमे पैडुल पे उतरना पड़ता है। पेडुल पौड़ी से 10-15 किलोमीटर दूर है। मैंने टैक्सी ली और उसमे बैठकर पैडुल पहुंचा। टैक्सी में पैडुल तक जाने के लिए ३० रूपये लगते हैं। फिर अगर उधर से मोल्ठी तक जाना हो तो दस रूपये में जा सकते हैं।

मेरे पास उधर उतर कर दो विकल्प थे: एक तो गाड़ी लेकर मोल्ठी तक जाऊँ और दूसरा ये की पैदल ही मोल्ठी तक जाऊँ

मैंने पैदल जाने की ही सोची। वैसे भी पैडुल से सीधी  सड़क ही मोल्ठी की तरफ ही जा रही थी तो रास्ता इतना मुश्किल भी नहीं था। तो आप भी मज़ा लीजिये।












रास्ते में मुसाफिर



मोल्ठी से एक km दूर अयाल में 



चामुंडा मंदिर 
मोल्ठी जाते हुए मुझे ये मंदिर दिखा तो हैरत हुई। अक्सर जब पहाड़ों के गाँवों में जाता तो उन गाँवों के मंदिर सबसे ऊँचे स्थानों पर होते हैं। उसके नीचे ही गाँवों के मकान होते हैं। यहाँ उलटा था। मुझे देखकर हैरानी हुई लेकिन फिर सोचा नाना जी से इस विषय में पूछूँगा। वैसे भी मेरा गाँव में रहने का अनुभव काफी कम है तो हो सकता है जो मेरे लिये हैरत की बात हो वो सामन्य हो। वापस आते वक्त जब नाना जी से इस विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये मंदिर काफी पुराना था।  वैसे कभी ये मंदिर भी ऊपर ही हुआ करता था लेकिन फिर एक बड़ी बारिश के दौरान बहकर इधर आ गया तो गाँव वालों ने इधर ही इसकी स्थापना कर दी। 

मंदिर के गेट से खींची तस्वीर

सड़क के किनारे से चामुंडा मंदिर की तस्वीर



मोल्ठी

ये पहुँच गया मोल्ठी। वैसे आने के लिये तो मैं इधर गाड़ी से भी आ सकता था लेकिन पैदल चलने में जो फोटो मिली वो कैसे मिलती। लेकिन एक बात का दुःख भी है। जब हम बचपन  में गाँव आया करते थे तो ये सड़क नहीं थी। उस वक्त हम गाँवों के बीचों से होकर आते थे। चलना काफी पड़ता था लेकिन वो रास्ता इससे कई गुना ज्यादा खूबसूरत था। अगली बार उधर से ही जाने की कोशिश करूँगा। 

गाँव से जब वापस आ रहा था तो पता चला कि उधर राम लीला की तैयारी हो रही थी।  ये मेरे लिये दूसरी हैरत में डालने वाली बात थी। पौड़ी और बाकी जहाँ भी मैं रहा हूँ उधर रामलीला तो दशहरा से पहले ही निपट जाता था।  इधर दिवाली के बाद होने की बात सुनकर मुझे  अचरच हुआ। नाना जी से पूछा तो उन्होंने कहा इधर ऐसे ही होता है। घर में मम्मी पापा से पूछा तो उन्होंने भी बताया कि ये सामान्य बात है।  उन्ही दिनों एक दूसरे  गाँव में रामलीला चल रही थी। 

मोल्ठी का मेरा जाना मुझे पसन्द आया।  अपने पैत्रिक गाँव गये हुए भी काफी वक्त हो गया है। उधर जाने के लिये भी कई गाँवों के मध्य से होकर जाना पड़ता है। जल्द ही उधर का चक्कर भी लगाऊंगा। 

मैं मोल्ठी कुछ ही घंटों के लिये गया था तो केवल नाना नानी जी के घर में रहा। गाँव में इतना नहीं घूम पाया। घूमा होता तो उधर की काफी चीजों से आपको मिलवाता। खैर, वो फिर कभी। 

अभी के लिये इजाजत चाहता हूँ। जीते रहिये और घूमते रहिये। 

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