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गजब ढाते हो

खुद ही ज़ख्म देके मरहम लगाते हो , मेरी जान क्यूँ मुझ पर गजब ढाते हो , मेरी हालत देख कर जब तुम मु…

ख्याल और मुस्कराहट

जब भी आते हैं मुझे ख्याल तेरे न जाने क्यूँ मुस्कुराते हैं लब मेरे , सोचता हूँ ये क्या हो रहा है…

अँधेरी रात | हिंदी कविता | विकास नैनवाल 'अंजान'

वो गहरी अँधेरी रात थी , केवल मेरी तन्हाईयाँ मेरे साथ थी , हम बैठे हुए घूर रहे थे अपने टीवी…

रोग बनकर रह गया , प्यार तेरे शहर दा- शिव कुमार बटालवी, जगजीत सिंह

कल बैठा जगजीत सिंह जी कि गायी हुई ग़ज़ल सुन रहा था । ग़ज़ल के बोल दिल को छू गये और मैं इसे काफी बार सु…

चलो महफ़िल जमाते हैं

चलो महफ़िल जमाते हैं, थोडा हँसते हैं ,इठलाते हैं , चलो महफ़िल जमाते हैं, दिन भर की थकान को…

एक कविता

कभी कभी जब हम अप्रत्याशित तरीके से किसी से रूबरू  होते हैं  तो  उस मुलाकात का अपना ही मज़ा होता है …

परिचय

य  म्यारी पहलि पोस्ट च इलेयी मि ये म केवल अपण विषय म आप लोगों ते बतौण चौंहदु छौं। मेरु नों विकास न…

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