कानपुर मीट #5: शाम की महफ़िल

 8th जुलाई 2017, शनिवार
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अल्मास भाई को छोड़ने के बाद हम होटल की तरफ मुड़ गये थे। यहाँ तक आपने पिछली कड़ी में पढ़ा। कुछ ही देर के सफ़र के पश्चात हम अपने होटल में थे। होटल पहुँच कर हमे अपनी दिन भर घूमने की थकान को दूर करना था और इसके लिए चाय और कॉफ़ी से बढ़िया और क्या हो सकता था। हम रूम में पहुंचे, फ्रेश वगेरह हुए और चाय कॉफ़ी का आर्डर दिया। कुछ ही देर में चाय कॉफ़ी भी आ गयी और सब उसकी चुस्कियाँ लेते हुए बीते हुए दिन के विषय में बातें करने लगे। ऐसी बातें चल रही थी कि दो लोगों की कमरे में एंट्री हुयी। हमे पहले ही बता दिया गया था कि अरविन्द शुक्ला जी और उनके साथ सिद्धार्थ सक्सेना जी भी इस मीट में शिरकत करने के लिए आने वाले थे। हम लोग बातें करते हुए उनका ही इन्तजार कर रहे थे। वो आये और हम सब से मिले। मैं पहली बार सक्सेना जी और शुक्ला जी से मिल रहा था। वो आये और हमारे साथ बैठकर बातचीत में शामिल हो गये। वो आये बैठे और शैलेश जी के पाठकनामा को देखने लगे। एक सुनील के संवाद को देखते हुए उन्होंने कहा कि ये तो सुनील का है। ये सुनना था कि योगी भाई ने उनसे पूछा कि आप भी पढ़ते हैं क्या पाठक साहब को। तो उन्होंने कहा थोड़ा बहुत पढ़ा है। फिर ऐसे ही बातों का  सिलसिला चलता रहा,शैलेश जी ने अपने लड़कपन के किस्से भी सुनाए और ऐसे ही बातों की जलेबियाँ छनती रही।

वहीं दूसरी तरफ दोनों होस्ट शाम की महफ़िल की तैयारी में जुटे हुए थे। एसएमपी मीट का मुख्य आकर्षण ये शाम की महफ़िल ही होती है। यहाँ लोग बाग़ आपस में फोर्मली मिलते हैं और अपने विषय में बाकी मौजूद लोगों को बताते हैं। बातचीत और चर्चा होती है। दौर-ए-जाम चलता है। यानी पूरा एन्जॉय किया जाता है। एसएममी मीट का ये वो हिस्सा है जिसका सभी को इन्तजार रहता है। हमे भी इसका इन्तजार था। नवल भाई के आईडिया के कारण आज तो केक भी कटना था। बातचीत करते हुए कब साढ़े सात बज गये पता ही नही लगा। अल्मास भाई भी होटल वापस आ गए थे।  अब शाम की कार्यवाही करने का वक्त हो गया था और धीरे धीरे सारे सुमोपाई होटल के हॉल की तरफ बढ़ने लगे। इसी हॉल में सब इंतजाम किया हुआ था।


नीचे जाने से पहले कुछ हल्की फुल्की बातचीत - बाएं से अल्मास भाई, पुनीत भाई, योगी भाई और शैलेश जी 

सात साढ़े सात तक सभी लोग हॉल में आ चुके थे। अब केक कटिंग होनी थी। हीरा फेरी आने के उपलक्ष में केक काटने का निर्णय किया गया था। एक तरीके से हम लोग अपने तरह से पाठक साहब के नये उपन्यास को सेलिब्रेट कर रहे थे। अब ये निर्णय लेना था कि केक कौन काटेगा तो ये निर्धारित हुआ कि होस्ट्स और  आज़ादभारती जी केक काटेंगे। तालियों की गडगडाहट के बीच केक काटा और फिर सबके बीच उसका वितरण हुआ। सबने यही दुआ की कि पाठक साहब यूँ ही लिखते रहे हैं और ऐसी ही उनके हर उपन्यास के लिए केक कटते रहे। नवल जी का ये आईडिया मुझे काफी अच्छा लगा और उनके इस आईडिया की जितनी तारीफ की जाए उतना कम है। उम्मीद है ऐसे छोटे छोटे आयोजन हर मीट में होंगे ताकि मीट और यादगार बन सके।

हीरा फेरी उपन्यास  आने के  उपलक्ष में लाया गया केक 

होस्ट पुनीत भाई, अंकुर भाई और आज़ादभारती जी द्वारा केक काटा गया 

केक काटने के बाद सबको खिलाया गया 
केक कटिंग सेरेमनी के खत्म होने के कुछ देर बाद ही दौर-ए-जाम शुरू हुआ। इसी दौरान पुनीत भाई के बड़े भाई भी मीट में आये और उन्होंने अपने प्यार और आशीर्वाद से सबको कृतार्थ किया। अब सभी अपना पसंदीदा पेय पी रहे थे। जिन्हें सोमरस पसंद था वो सोमरस, जिन्हें कोल्ड ड्रिंक पसंद थी वो कोल्ड ड्रिंक और जिन्हें कोल्ड ड्रिंक और सोमरस दोनों पसंद था वो उसे मिलाकर चुसक रहे थे। संक्षेप में कहूँ तो सभी अपनी इच्छानुसार आनंद ले रहे थे। स्टार्टर्स भी चालू हो चुके थे। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों का बंदोबस्त था।  जामों के दौर और स्वादिष्ट स्टार्टर्स के साथ मीट की अगली कार्यवाही शुरू हुई।

पुनीत भाई उठे और उन्होंने मीट के होस्ट होने के कारण एक वक्तव्य दिया जिसमे उन्होंने सबको शुक्रियादा अदा किया। इसके बाद उन्होंने अल्मास भाई को सभा संचालन करने का कार्यभार सौंपा। क्योंकि हममें से काफी लोग एक दूसरे को जानते थे तो ये निर्धारित हुआ कि अल्मास भाई जो लोग एक दो मीट में आये हैं उनका संक्षिप्त परिचय देंगे और बाकी नये लोग अपना परिचय खुद देंगे तथा ये भी बताएँगे कि पाठक साहब के साथ उनका रिश्ता किस तरह जुड़ा।

हसन भाई ने कार्यभार संभाला और परिचय शुरू किया। मैंने अपने फोन में रिकॉर्डर ऑन कर लिया था जिसके कारण मीट का काफी ऑडियो मेरे पास रिकॉर्ड हो गया था। उसी से मीट की हाईलाइट्स आपके समक्ष रखना चाहूँगा।
आज़ादभारती जी  के इंट्रोडक्शन से उन्होंने शुरुआत की। आज़ादभारती जी सबसे पुराने  एसएमपियन थे। वे पाठक साहब के अजीज दोस्त हैं और एक बढ़िया कलेक्टर हैं। फिर मेरी बारी आई। जिसमे पहले मेरे बालों के सफेदी के लिए धूप को जिम्मेदार ठहराते हुए मेरी उम्र से सबको वाकिफ करवाया। फिर मेरे इस ब्लॉग के विषय में उन्होंने बताया। फिर बारी आई नवल जी की। मुझे अल्मास भाई द्वारा ही पता चल कि उनका निकनेम बबलू है। उनके रंगीन मिजाजी और सोमरस के प्रेम को इंट्रोडक्शन में तवज्जो दी। जिसका नवल जी ने हँसते हुए विरोध किया और कहा रंगीन तो वो हैं लेकिन सोमरस से उन्हें इतना प्रेम नहीं है। इसके इलावा फेसबुक पे नवल जी ने  बर्थ इयर 1984 डाला है (जिसका पता मीट के लिए जब उनकी टिकेट बुक कर रहे थे तो हमे लगा) जिस पर भी हल्का सा मजाक हुआ और उनकी चुस्की ली गई। अब बारी शैलेश जी की आई। उनका परिचय देते हुए अल्मास भाई ने कहा कि वो पाठक साहब के उच्च कोटि के मुरीद हैं जिन्होंने न केवल पाठक साहब को पढ़ा है लेकिन अपने पाठकनामा से उनके संवादों को एक नया आयाम दिया है। इसके बाद पाठकनामा के लिए तालियाँ बजाई गयी।

अब बारी थी सिद्धार्थ सक्सेना जी और अरविन्द शुक्ला जी की। चूँकि अल्मास भाई और हम सब उन्हें पहली बार मिल रहे थे तो उनका परिचय जानने के लिए उत्सुक थे और उन्होंने अपना परिचय देने के लिए बोला।

सिद्धार्थ जी ने बताया कि वो ग्वालियर से हैं। व्यापार करते हैं जो कि ग्वालियर, लखनऊ और कानपुर में होता है। ये कहकर वो बैठने लगे।

इतने में बाकी लोग उनसे दरख्वास्त करने लगे कि वो पाठक सर और उनकी कृतियों से अपने सम्बन्ध के विषय में भी बताएं। अभी तक सिद्धार्थ जी अंग्रेजी में ही परिचय दे रहे थे। तो उनसे दरख्वास्त भी अंग्रेजी में ही करी गयी।

पुनीत जी ने भी अंग्रेजी में ही अपनी इल्तजा पेश की लेकिन अल्मास भाई जो कि सहसंचालक थे ने उन्हें 'प्लीज डोंट टॉक इन इंग्लिश' कहकर अंग्रेजी में बात करने से मना किया। अगर आप एसएमपीयंस जो जानते हैं तो ज्यादातर एसएमपियंस का पसंदीदा शगल एक दूसरे की टांग खींचना होता है। ये टांग खिंचाई पूरी मीट के दौरान चलती है और इसमें होस्ट हो या मेहमान, बड़े हों या छोटे, पतले हों या मोटे किसी भी एसएमपीयन को बक्शा नहीं जाता है। टांग खींचने के मामले में अल्मास भाई अग्रणी मेम्बरान में से एक हैं और पुनीत जी और दीपक जी की टांग अक्सर खींचने को तत्पर रहते हैं। तो दुबे जी को अंग्रेजी में न बोलने के लिए अल्मास भाई ने कहा तो पुनीत भैया अपनी इल्तजा हिंदी में रखी और कहा कि हिंदी में वार्तालाप हो तो  बेहतर होगा। उनका ये कहना अभी खत्म भी न हुआ था कि अल्मास भाई ने अपनी तरंग में एक अंग्रेजी कुछ कहना शुरू किया। ये  क्या था ये तो या वो जानते हैं या खुदा। जो कुछ मेरी समझ में ऑडियो को बार बार चलाने के बाद आया वो आपके समक्ष उधृत करने की कोशिश कर रहा हूँ:

this is the justification, certification, under-graduation. Point to be noted, appeal granted. To be hanged till death. Mutual funds are subject to market risk. Please read offer documents carefully before investing.(इसके बाद आठ दस शब्द और थे जिनको मैं decipher न कर सका. अगर किसी को याद हो तो जरूर बताइयेगा ताकि भावी पीढी के लिए उसे संरक्षित किया जा सके।). yeah,हिंदी में बोलिए।'

इस वक्तव्य के बाद अल्मास भाई शांत हुये तो नवल जी ने इंग्लिश इस अ वैरी फनी लैंग्वेज कहकर अपनी बात रखी।

अब इतनी बातचीत के बाद सिद्धार्थ भाई जी ने बैठना ही सही समझा। अब परिचय की बारी अरविन्द भाई की आई।उन्होंने कहा वो पाठक जी को ७६-७७ यानि जब वो आठवीं के छात्र थे तब से पढ़ रहे हैं। उन्होंने उनकी लगभग सारी किताबें पढ़ी और उन्होंने कहा कि कुछ किताबें तो बीस से पच्चीस बार पढ़ी। ये सुनकर मुझे काफी अच्छा लगा। ऐसे जुनूनी फैन से मिलने का मज़ा ही कुछ और होता है। बाकी लोगों ने तालियाँ बजाकर अरविन्द जी की इस बात की तारीफ़ की।

इसके बाद अल्मास भाई ने दुबारा परिचय कराने का जिम्मा संभाला और पुनीत भाई का परिचय सबके समक्ष रखा। पुनीत जी जो एसएमपियंस के बीच में प्यार से 'पी के डूबे' भी कहा जाता है। अल्मास भाई ने बताया कि पुनीत जी एक अच्छे गजल गायक भी हैं और इसके इलावा अगर वो मीट्स में किसी के फेन हुए हैं तो वो दो चार लोग हैं। एक राजीव रोशन भाई, एक शैलेश अग्रवाल जी और एक पी के दुबे जी। इस वक्त पुनीत जी ने अल्मास भाई को रोका और कहा कि इस मौके पर राजीव रोशन भाई के लिए तालियाँ होनी चाहिए। उनके लिए तालियाँ बजाई गयी। राजीव भाई की अथक मेहनत का परिणाम है ये मीट्स इतनी सफल होती हैं। उनके मेहनती स्वभाव और उनकी कार्यकुशलता की सबने तारीफ की। नवल जी ने ग्रुप में उनकी एफिशिएंसी की तारीफ कि और कहा कि भले ही वो राजीव भाई से मिले नहीं हैं लेकिन वो उससे ही उनके कायल हो चुके हैं।

अब राजीव सिंह जी के परिचय की बारी आई। राजीव जी लखनऊ से हैं। उनका परिचय देते हुए उन्होंने अपनी पहली मुलाकात में राजीव जी द्वारा दी गयी सीख का भी उल्लेख किया। उसमे राजीव जी ने उन्हें वेल ड्रेस्ड होने की सलाह दी थी जो कि अल्मास भाई ने एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दी थी। उनके विपरीत राजीव भाई हमेशा वेल ड्रेस्ड रहते हैं। अल्मास भाई अपनी तरंग में ही थे कि किसी ने पुछा कि उनका ये सब कहने का मंतव्य क्या था तो अल्मास भाई ने अपने चुटीले अंदाज में कहा कि राजीव जी से वो पूछना चाहते हैं कि वेल ड्रेस्ड होने पर भी उन्होंने क्या उखाड़ लिया। ये बात बोलनी थी कि सब हंसने लगे। सब हंस तो रहे थे लेकिन कभी कभी सोचता हूँ कि बाकी लोग ये भी सोच रहे होंगे कि चलो हम बच गये वरना अल्मास भाई किसकी चुटकी ले लें पता नहीं चलता। इसके बाद लखनऊ के राजीव सिंह जी का ससुराल जब अल्मास भाई ने गोरखपुर बताया तो राजीव भाई ने कमान अपने हाथ में ले ली और कहा कि वो लखनऊ के हैं और गोरखपुर से उनका कोई रिश्ता नहीं है (ससुराल की बात आते ही आदमी अक्सर डर जाता है इसलिए ज्यादा कुछ मैं नहीं कहना चाहूँगा। आप सब समझदार हैं। 😛😛😛😛😛)।

राजीव सिंह जी के बाद  राघवेन्द्र जी का नंबर आया। उन्होंने अपना नाम बताया तो अलमास भाई ने चुटकी लेते हुए राघव जी और रमन राघव के बीच समानता दिखलाई। हाँ, उन्होंने ये भी जोड़ा कि जहाँ रमन राघव एक साइको था वहीं राघव जी के मृदुभाषी इन्सान हैं। उनसे पहले नवल जी और पुनीत जी भी इस बात को कह चुके थे। राघवेन्द्र जी ने बताया कि वो बनारस से हैं और उनकी एक कंस्ट्रक्शन कंपनी है। पाठक साहब को उन्होंने ९३ -९४ से पढ़ रहे हैं। 200 से ऊपर किताबें उनके पास हैं। मेल के माध्यम से पाठक साहब से जुड़े थे। नवल जी ही पहले एसएमपियंस थे जिन्हें वो पहली बार मिले।

राघवेन्द्र जी के बाद पुनीत भाई के बड़े भाई साहब जी का नंबर आया। वो पेंट्स के बिज़नस से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि उन्होने पाठक साहब को जितना पढ़ा है वो पुनीत भाई और उनके बड़े भाई के माध्यम से पढ़ा है। उन्हें विमल के बखिया पुराण में मौजूद उपन्यास काफी पसंद आये थे। अब वो व्यापार के कारण इतना तो नहीं पढ़ पाते लेकिन पुनीत भाई अक्सर उन्हें पढने के लिए किताबें दे देते हैं। उनका वक्तव्य समाप्त होने के बाद नवल भाई उठे और उन्होंने उनका हार्दिक धन्यवाद किया। नवल भाई ने कहा कि हमे पता नहीं था की पुनीत भाई के बड़े भाई भी पाठक सर के फैन हैं और उन्होंने मीट में उपस्थित होकर हमारा मान बढाने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।

पुनीत भाई के बड़े भाई साहब जी के बाद बाद अंकुर भाई की बारी आई। अंकुर भाई मीट के होस्ट थे और पुनीत भाई के साथ उन्होंने इस बेहतरीन मीट का आयोजन किया था। अंकुर भाई ने बताया की वो अलाहाबाद बैंक में मेनेजर हैं। उन्होंने पाठक साहब को २००४ से पढना शुरू किया। उनके अनुसार उन्होंने पहला नावेल सुनील का पढ़ा था जिसका नाम वो थोड़ा भूल गये थे लेकिन उसके बाद वो पाठक साहब के नावेल में ऐसे रमे कि उनके ज्यादातर नावेल पढ़ डाले। उन्होंने कहा उनके पास पाठक साहब के १७९ नोवेल्स का संग्रह है जो की हार्डकॉपी में मौजूद है और बाकी जो बचे हैं वो डेलीहंट में हैं। उन्होंने ये कहा तो नवल भाई ने कहा की उन्हें इतना एक्जेक्ट काउंट पता है तो इसके लिए तालियाँ बजनी चाहिए। अंकुर भाई अंतर्मुखी हैं (मुझे ऐसा मीट के दौरान लगा था) और उन्होंने इस बात को यूँ एक्सप्लेन किया की चूंकि मीट थी तो उन्होंने सोचा कि जो उपन्यास उनके पास डबल हैं उन्हें वो मीट में अन्य पाठकों को दे देंगे और इसी वजह से उन्हें एक्जेक्ट काउंट याद है। फिर उन्होंने कहा कि वो ग्रुप में तो काफी वक्त से जुड़े हैं लेकिन मीट में नहीं आ पाए थे। पुनीत जी से मिलने का किस्सा उन्होंने बताया की कैसे उन्होंने के बार ग्रुप में एक उपन्यास की फोटो डालकर पुछा था की ये उपन्यास नहीं मिल पा रहा है तो पुनीत भाई ने उन्हें घंटाघर जाकर देखने को बोला था और उधर उपन्यास उन्हें मिल गया था। और उसके बाद ही कानपुर मीट के सिलसिले में वो पुनीत भाई से मिले थे। तो ऐसे ये मीट दो एसएमपियंस के मिलने का कारण भी बनी थी।

इस बीच शैलेश जी ने अंकुर भाई से पूछा कि एस अ बैंक मेनेजर पैंसठ लाख की डकैती आपको कैसे लगती है? ये सुनकर सभी हंसने लगे। उधर राघव भाई ने कहा कि पैंसठ लाख की डकैती के इलावा बैंक वैन रॉबरी भी है। इसी बात पर तालियाँ बजाई गयी और हंसी मज़ाक का माहौल शुरू हो गया। योगी भाई ने कहा कागज़ की नाव में भी है डकैती। और शैलेश भाई ने अपने प्रश्न की कमान संभालते हुए पूछा की इतनी सारी डकैतियों से आपको क्या शिक्षा मिलती है कि कहीं विमल आ गया तो आप क्या करेंगे? अंकुर भाई ने भी फट से जवाब दिया की बैंक का सारा पैसा का बीमा हुआ रहता है तो मैं तो कहूँगा जो लेना है ले जाओ। लॉकर के विषय में पूछा गया तो उन्होंने कहा उसके तो दो चाबियाँ होती है इसलिए उसके विषय में कुछ नहीं कर सकता। यहीं पर शैलेश जी ने कहा  कि अगली बार पैंसठ लाख की डकैती हो तो आपका कोऑपरेशन फुल रहेगा यानी। ये सुनते ही सब हंसने लगे। वहीं किसी ने चुस्की ली कि खाली करने में या लिखने में? तो शैलेश भाई ने बोला की दोनों में। वैसे भी आजकल इतना टाइम कहाँ हैं कि पहले लिखो और फिर करो।

अंकुर भाई से फिर पूछा गया की उन्हें पाठक सर के कौन से नावेल पसंद हैं तो उन्होंने जवाब दिया की उन्हें पाठक सर के सुनील सीरीज और विकास गुप्ता श्रृंखला काफी पसंद हैं। विकास गुप्ता के विषय में उन्होंने बोला कि विकास गुप्ता श्रृंखला उन्हें बहुत अच्छी लगी और एक नावेल जिसमे जीता और विकास  विमल को पैसा देते हैं उन्हें अच्छा लगा। साथ में जो वो शर्त लगाता था और उसके और मनोहर लाल गुप्ता के बीच के स्मार्ट टॉक भी उन्हें काफी पसंद आये थे।(मुझे भी लगता है कि मुझे भी विकास गुप्ता श्रृंखला जल्द ही पढनी होगी।) फिर अंकुर जी ने कहा की उन्हें पाठक साहब के नावेल का यथार्थवाद काफी पसनद आता है। उनके नावेल पढ़कर लगता है कि किरदार आपके हमारे जैसे लोग हैं जो हमारी तरह ही ज़िंदगियाँ जी रहे हैं। इसके बाद उन्होंने अपना एक अनुभव साझा किया।  उन्होंने अपने एक मित्र के विषय में बताया  कि वो उन्हें टोकते थे कि क्या तुम हिंदी नावेल पढ़ते हो? ऐसे में उन्होंने एक बार उन्हें पाठक साहब का एक उपन्यास डायल १०० पढने को दिया और कहा कि आप बीस पृष्ठ तो पढो। अगर फिर भी आपकी सोच नहीं बदलती तो हम सोचेंगे। लेकिन अब होना क्या था हम सबको पता है। डायल हंड्रेड ने उनके मित्र को इतना प्रभावित किया कि वो भी उनके फैन हो गये और पाठक साहब के बुक्स मांगकर पढने लगे। इस बात का तालियों से स्वागत हुआ। और अंकुर जी का वक्तव्य समाप्त हुआ।

इसके बाद बारी सुभाष चन्द्र आज़ादभारती जी की आई। वे चंडीगढ़ से हैं और पाठक साहब के सबसे बड़े फैन में से एक हैं। उन्होंने कहा १९७६ में पाठक साहब को पहली बार मिले कृष्ण नगर में और उसके बाद वो जब भी दिल्ली जाते थे तो पाठक साहब से मिल लेते थे। सुनील श्रृंखला की विषकन्या उन्हें काफी पसंद आई थी। इस पर नवल जी द्वारा विषकन्या पे तालियाँ बजवाई गयी।उन्होंने अपनी बात आगे जारी करते हुए कहा कि लोग अक्सर जादूगरनी की तारीफ़ करते हैं लेकिन उनके मुताबिक़ विषकन्या जादूगरनी की तुलना में काफी अच्छा उपन्यास है। उन्होंने ये भी बताया की पहले के संस्करण में ये तक बताया था कि वो सिख है लेकिन बाद के संस्करण में ये बात हटा दी थी। इससे ही आप पाठक साहब के उपन्यासों के विषय में उनके वृद्ध ज्ञान का अंदाजा लगा सकते हैं। जहाँ कई पाठकों को उधर विषकन्या की कहानी क्या है ये नही सूझ रहा था वहीं आज़ादभारती जी अलग अलग संस्करण के विषय में भी जानते थे। इसके इलावा अनोखेलाल नाम का किरदार भी उन्हें काफी पसंद आया और उनहोंने कहा कि  वो उपन्यास उन्हें मेरा साया की कहानी दिलाता है। फिर उन्होंने अंकुर मिश्रा जी को उन्हें कानपुर आने के लिए आमंत्रित करने का धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्हें अपने और संस्मरण बताने के लिए बोला गया। इसी बीच अल्मास भाई ने तरंग में गाना शुरु कर दिया 'कितने भूले हुए फैन्स मीट का फलसफा याद आया आप आये'। उनके गाने की समाप्ति के  बाद भारती जी ने कहना शुरू किया कि अभी जो पाठक साहब के लिए विशी सिन्हा और शरद श्रीवास्तव जी ने काफी काम किया है। उन्होंने उन्हें प्रमोट और हाईलाइट में लाने में काफी मदद की विशेषतः पाठक साहब की ऑनलाइन प्रेसेंस में। यहीं पर नवल जी ने कहा कि वो कहना चाहेंगे कि पाठक साहब को हाईलाइट करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। इसी बात पर पुनीत जी ने जोड़ा कि ये तो सूरज को टोर्च दिखाने की जैसी बात हुई। यहीं पर अंकुर भाई ने हंस में छपे हुए एक आर्टिकल का हवाला देते हुए कहा की उसमे विशी जी का लेख छपा था और ये काफी बड़ी बात थी और उसी में विशी जी पाठक साहब नाम लिया था। इसके इलावा मुझे ये भी याद आता है कि विशी जी द्वारा पाठक साहब का लिया इंटरव्यू एक और साहित्यिक पत्रिका में भी छपा था- शायद पाखी थी वो। वो भी अच्छा काम उन्होंने किया था। इसके बाद आज़ादभारती जी ने कहा कि डेलीहंट पे जो उपन्यास छपे हैं वो भी उन्ही की मेहनत से छपे हैं जो कि मुझे सही लगा। माहौल थोड़ा गरमा गर्म हो गया। इसमें शायद सुरा का भी योगदान था। नवल जी कुछ और कहना चाहते थे लेकिन अल्मास भाई ने ये कहते हुए उन्हें रोका कि मैं एक छोटी सी बात कहना चाहता हूँ। उन्होंने कहना शुरू किया,'मैं अमरेन्द्र बाहू बलि यानी मैं एक बात को यहाँ से (दिल से) मानता हूँ। पाठक साहब बहुत अच्छे राइटर हैं। शानदार जबरजस्त जिंदाबाद राइटर हैं और रहेंगे। लेकिन हर चीज को वक्त के हिसाब से एक लेवल अप करना पड़ता है। एक चीज को पोलिश,एडवर्टाइज और प्रेजेंट करना होता है। पाठक साहब के उपन्यासों को अमेज़न,फ्लिप्कार्ट, इन्फिबीम और डेलीहंट सरीखे ऑनलाइन स्टोर तक पहुंचाने में जिन कुछ लोगों का हाथ है उनमे राजीव रोशन, शरद श्रीवास्तव जी और विशी सिन्हा जी आते हैं। इसके इलावा मैं किसी और चीज को नहीं जानता। मेरे लिए तो ये एहसान है और इसलिए जो पुरानी किताबें आ रही हैं वो इन्ही लोगों का खून पसीना है।' अल्मास भाई की इस बात का सबने स्वागत किया और उन्होंने सही तरीके से सुभाष जी की बात को सबके समक्ष रखा। इसके बाद उन्होंने कहा कि जब तक मैं जिंदा हूँ तब तक आप मुझे पाठक साहब के किसी नोवल के विषय में बोलिए तो मैं आपको वो नावेल दूंगा। बस ये बात ध्यान रखना कि किताब सूंघ के पढनी है तो नशा होना है, तभी नींद आनी है और तभी चैन आना है। इधर नवल जी ने कहा कि पाठक साहब के जितने शैदाई हैं वो उनके उपन्यासों को जाने जिगर से सटा कर ही पढ़ते हैं। इस बात का सबने तालियों से स्वागत किया।

फिर मुझे बोलने के लिए बोला तो मैंने बताया की मैंने पाठक साहब को कोलाबा कांस्पीरेसी से पढना शुरू किया। उसके बाद ऐसी लत लगी कि ढूंढ ढूंढ कर उनके बाकी उपन्यास जितने मार्किट में ले लिए और उन्हें पढने लगा।
यहीं पर सिद्धार्थ जी ने बोला कि  इस बात की तारीफ करनी चहिये की मैंने कोलाबा से पढ़ा और अब फैन मीट में हूँ। सिद्धार्थ जी ने पहले कहा था कि उन्होंने पाठक साहब को इतना नहीं पढ़ा है तो इसलिए शैलेश  जी ने कहा कि हमें तो इस बात की ख़ुशी है कि आपको पता है कोलाबा क्या है। इस पर एक हँसी की लहर मीट में दौड़ गयी। उसके बाद सिद्धार्थ जी ने कहा कि मेरे मन में काफी कुछ है बोलने के लिए और वो बोलना चाहेंगे। नवल जी ने कहा कि आपको भी मौका मिलेगा।  फिर मुझे दुई बात के विषय में बताने के लिए कहा गया तो मैंने उन्हें उसके विषय में उन्हें बताया।

इसके बाद अल्मास भाई ने कहना शुरू किया कि वो इधर कुछ नया करना चाहते हैं और बाकी पाठकों  को उन लोगों से इंट्रोड्यूस करवाना चाहते हैं जिन्होंने शुरूआती दिनों में समूह के लिए काफी अच्छा काम किया। उन्होंने छः साल पहले की बात बताई जिसमे ऑरकुट से  फेसबुक में  समूह लाने के लिए और उस समूह में मेहनत करने के लिए पवन शर्मा जी का नाम लिया और उनके लिए ताली बजवाई। पवन शर्मा जी के बाद कँवल शर्मा जी के विषय में बात करते हुए उन्होंने उनके लिए भी ताली बजाई। कँवल शर्मा जी के विषय में कहते हुए उन्होंने बताया कि एक बड़े भाई की तरह उन्होंने समूह को काफी गाइड किया है और इसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया गया। इसके बाद नवल जी ने बुक फेयर में और चंडीगढ़ मीट के दौरान उनके कँवल जी के साथ मिलने के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि वे बहत मृदुभाषी हैं और उन्होंने उनके मुंह से कभी भी कोई कठोर शब्द नहीं सुना। इसके इलावा उनके लेखनी और उनके उपन्यासों के विषय में भी काफी देर बातचीत हुई। इसके बाद अल्मास  तीसरे व्यक्ति को इंट्रोड्यूस करते हुए कहा कि अब जिस आदमी के विषय में बात करूंगा जिनके सामने ज्ञान भी नतमस्तक है। गूगल जिनसे पूछ कर बना था। जिन्हें किसी भी विषय पर रात के बारह बजे भी पूछो तो वो जवाब सोते हुए दे देंगे। वो आदमी हैं अपने गुरुजी यानी राजीव सिन्हा जी।

इसी दौरान अल्मास भाई की नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझसे पूछा कि रिकॉर्डिंग चल रही है क्या? तो मैंने कहा नवल भाई जिनके फोन से विडियो बन रहा था उनकी मेमोरी तो फुल हो गयी थी इसलिए खाली ऑडियो रिकॉर्डिंग हो रही थी। ये जानने के बाद कि उनके कहे हुए शब्द आने वाली पीढी के लिए संरक्षित हो रहे हैं अल्मास भाई मुस्कुराए और अपना वक्तव्य शुरू किया। उन्होंने कहा कि अब एक आदमी के विषय में बताना चाहते हैं जिसके हाथ में हम सबकी नाक के नकेल हाथ में रख सकता है और फिर भी जो सबसे बड़े तहजीब से बात करता है। जो अपनी मेहनत से सबको साथ में संजो कर रखता है। फिर उन्होंने कहा कि नागिन फिल्म से उन्होंने ये प्रेरणा ली है। जब उसकी कास्टिंग स्क्रीन पर आती थी तो सबसे पहले बाकी किरदारों के नाम आते थे और अबव ऑल मिस्टर सुनील दत्त लिखा हुआ आता था और यही मैं इधर करना चाह रहा हूँ।तो वैसे ही मैं यहाँ बोलूँगा कि एंड अबव ऑल राजीव रोशन। १५०० सौ आदमियों का एक लौता बाहूबली।

यहाँ पर नवल जी ने कहा कि एक बात सबको बोलना चाहूँगा कि उनका जिक्र होना चाहिए जिनका नाम छूट गया है जो न हुआ तो सही नहीं होगा। वो हैं जी पी पाजी जो कि एक बेहतरीन इन्सान हैं और महफ़िल की जान है। अभी उनके लिए एक ग्रैंड क्लैपिंग होनी चाहिए। जीपी सर के लिए क्लैप्पिंग हुई।

अव  सिद्धार्थ जी की दोबारा बारी है। उन्होंने बोला कि वो कुछ बोलना चाहते हैं और जब सब इंट्रोड्यूस हो गये थे तो अब वो खुल कर बोल सकते थे। सिद्धार्थ जी ने बात शुरुआत करते हुए कहा कि वैसे तो उनकी नोवेल्स के विषय में काफी कम नॉलेज है। और उन्हें नोवेल्स पढना इतना पसंद भी नहीं है। उन्होने कहा कि उनका छोटा भाई और बड़ा भाई एक तरीके से नोवेल्स के कीड़े हैं। उन्होने अपने भाइयों के विषय में बताया कि आज भी उनके जूनून को देखता हूँ तो हैरान रह जाता हूँ। वो दो दो बच्चों के पिता बन चुके हैं लेकिन आज भी जब मार्किट में कोई नया नावेल आता है तो वो उन्हें लेकर आते हैं। उन्होंने फिर कहा कि जब मैं उन्हें उस नावेल के साथ देखता हूँ तो हैरत करता हूँ कि दो घंटे में इतना बड़ा नावेल वो कैसे पढ़ लेंगे। वो लेकर आते हैं और पढ़ भी लेते हैं। उन्होंने फिर कहा कि नावेल के विषय में लोग बाग़ कहते जरूर हैं कि मैं नावेल नहीं पढता लेकिन उनमे ऐसा आकर्षण भी होता है कि एक बार अगर आपने उसे पढने के लिए ले लिया तो आप उससे जरूर चिपक जाओगे। ये सिद्धार्थ जी ने  बड़ी पते की बात बोली थी और इसमें तालियों से उनकी बात का समर्थन किया गया। फिर उन्होंने कहना जारी रखा कि मेरे मामले में मैं नावेल बहुत कम और चुन चुन के पढता हूँ। अगर मैं देखता हूँ कि मेरे भाई उसे बड़ी तल्लीनता के साथ पढ़ रहे हैं तो मैं उनसे पूछता हूँ कि इसमे ऐसा क्या है और अगर देखता हूँ कि पाठक साहब का उपन्यास है तो उनसे ले भी लेता हूँ। मैं अक्सर ये बोलकर लेता हूँ कि वक्त मिलेगा तो पढूंगा क्योंकि मैं अक्सर जल्दी सोकर जल्दी जागने वालों में से हूँ। ऐसे में अगर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की किताब उठाऊँ  हो एक बार शुरू होने के बाद रुकने का मन नहीं करता है और अगर छोड़ना पड़े तो इतना दुःख होता है जैसे कोई कोर्स की किताब का चैप्टर एग्जाम से पहले छोड़ रहा हूँ। उनकी इस बात पर भी वाह-वाह हुई।

इसके बाद वो अपने भाइयों का एक किस्सा सुनाने लगे तो नवल जी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि आप अच्छा बोल रहे हैं लेकिन एक बात मैं कहना चाहता हूँ। जब आपने कमरे में अपना परिचय दिया था तो आपने कहा था कि मैं पाठक साहब की रचनाओं को बहुत कम जानता हूँ लेकिन आप तो बहुत ज्यादा जानते हो। ये सुनकर सब हंसने लगे। इसी बात पर थोड़ा हँसी ठट्टा हुआ किसी ने कहा आप छुपे रुस्तम हो तो किसी ने कहा आप हमे सरप्राइज देने आये हो।


जब माहौल शांत हुआ तो  सिद्धार्थ जी ने अपने भाइयों का किस्सा बताते हुए कहा कि जब वो पिताजी को देखने आते थे तो स्टेशन पर नोवल की दुकान पर पहले जाते थे कि कमरे में बोर होंगे तो क्या करेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा ऐसे में मैं भी उन्हें कह देता था कि अगर नावेल लाओगे तो ऐसे लाना जो मुझे पसंद हैं। जब वो मुझे पूछते थे कि क्या लाना है तो मैं कहता था कि मुझे तो नावेल में दो ही चीजें पता हैं एक तो रमाकांत और एक सुनील तो वही  वाली ले आओ। फिर उन्होंने कहा कि आपने पाठक साहब के विषय में पूछा कि मैं इतना ऐसा क्यों जानता हूँ तो वो इसलिए कि मेरा नेचर ऐसा है कि मुझे चीजों की परख करना अच्छा लगता है। फिर व्यपार में लोगों से मिलना जुलना होता है तो उसमें भी ये नेचर काम आता है। मैंने पाठक साहब की नोवल से इस परखने को सीखा है विशेषतः कौन सा व्यक्ति कौन सा नशा करके कैसा व्यवहार करेगा और किस तरह तरह से विभिन्न परिस्थितयों में किस तरह से व्यवहार करेगा। इस हिसाब से मैं कह सकता हूँ कि मैंने जितना भी पढ़ा है भले ही कम पढ़ा है लेकिन उतने में मुझे उस पढने से लोगों को जांचना परखना आ गया है।

इसके बाद चर्चा सुनील और रमाकांत के ऊपर चल पड़ी। सुनील और रमाकांत के बीच की जुगलबंदी, कैसे इन दोनों किरदारों में समय के साथ बदलाव हुआ (राघवेन्द्र जी ), कैसे एक ही किरदार पर इतनी नावेल लिखना काफी बड़ी बात थी (नवल शर्मा) इत्यादि। इसके बाद बातचीत अर्जुन की भी हुई और कैसे वो अपने गुरु के कदमो पर चलने लगा।

अब शैलेश अग्रवाल जी ने बोलना शुरू किया। उन्होंने कहा इधर उपन्यास के ऊपर काफी चर्चा हुई, पाठक साहब के उपन्यासों की मनोरंजक वैल्यू के ऊपर बातचीत हुई, किसने क्या सीख ली इसके ऊपर बातचीत हुई लेकिन एक बात रह गयी है। मेरे अनुभव में पाठक साहब के उपन्यास दवा का भी काम करते हैं। फिर उन्होंने  अपना अनुभव बताना शुरू किया कि उन्होंने उपन्यास को बचपन में नहीं पढ़ा था क्योकि ऐसा चलन नहीं था। कुछ साल पहले उन्हें किन्ही कारणवश ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जिससे उन्हें काफी परेशानी हुई। अपनी परेशानियों को भुलाने के लिए उन्हें कईयों ने नशा करने तक की सलाह दी लेकिन वो भी परेशानी भुलाने में  सफल नहीं रहा। उन्हें किसी ऐसी चीज की जरूरत थी जिससे वो कुछ देर के लिए अपनी परेशानी को भूल सकें और ऐसे में शैलेश जी के पिताजी ने उन्हें हारजीत उपन्यास दिया। पाठक साहब के उपन्यास दवा के तरह उनके जीवन में आये और उन्होंने उनके मन को परेशानियों से दूर ले जाने का काम किया। इसके इलावा उपन्यास ने उन्हें अपने काम में श्रेष्ठता हासिल करने की भी प्रेरणा दी। जिस प्रकार विमल पहले प्लानिंग करता है, फिर रिहर्सल करता है और उसके बाद फाइनल काम करता है उसी प्रकार वे भी अपने काम को इसी तरह करने लगे। अपने ऑफिस के लिए प्लान तैयार करना, क्लाइंट्स को कल्टीवेट करने और उसी हिसाब से आगे का रोडमैप तैयार करना इत्यादि। अपनी बात का अंत करते हुए उन्होंने कहा कि कहने की बात ये है कि उपन्यास पढने से कोई भी आदमी प्रेरणा लेकर कामयाब हो सकता है। उपन्यास पढने से काफी कुछ सीखा जा सकता है। इसके बाद नवल शर्मा जी, जो की आयकर विभाग में हैं, की चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि आपके डिपार्टमेंट में घूस कैसे दी जाए ये भी उन्होंने पाठक साहब से ही सीखा है।

ये सुनकर नवल शर्मा जी समेत हम सभी हँसने लगे।

इसके बाद कागज की नाव के कुछ दृश्य(अरविन्द जी), इन्साफ दो की अंजीर की बर्फी, वहशी(राघवेन्द्र जी) जैसे कई नोवेल्स के किरादारों, उनके संवादों के ऊपर चर्चा जारी रही।इसके बाद चर्चा  थोड़ा गरमा गर्मी इस बात से आई जब प्रेमचंद से पाठक साहब की तुलना हुई। कुछ लोग इस पक्ष मे नहीं थे तो इस बात पर चर्चा चली। मेरा मानना है कि ये व्यक्तिपरक बात है। जो जिससे प्रेरित होगा या जिसे पसंद करता होगा वो ही उसके लिए बढ़िया लेखक होगा। लेखक की बढ़िया होना इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वो पाठक को वो चीज दे पा रहा है जिसके कारण पाठक उसे पढना पसंद करता है। अगर लेखक ज्ञान ही दे रहा है तो पाठक उससे बोर हो जाएगा लेकिन अगर मनोरंजन के साथ ज्ञान दे रहा है तो वो उसे ज्यादा आत्मसात करेगा। मेरे एक शिक्षक कहते थे कि अगर कोई बन्दा हैरी पॉटर की किताबों के बीच फिजिक्स के नियम छाप दे तो बच्चे उनकों भी उसी चाव से पढ़कर उसे अच्छी तरह से समझ जायेंगे। कहने का मतलब है कि 'क्या कह रहे है' के इलावा 'कैसे कह रहे हैं' की भी अपनी इम्पोर्टेंस होती है। पाठक साहब ये कर पाए हैं और प्रेमचंद भी ये कर पाए थे क्योंकि दोनों ही लोकप्रिय लेखक हैं इसलिए लोगों को इन्फ्लुएंस करने की ताकत दोनों में थी।

फिर वापस चर्चा पाठक साहब के ऊपर वापस आई और अल्मास भाई ने बोलना शुरू किया। उन्होंने कहा कि कई लेखकों ने लिखा है अच्छा लिखा और काफी अच्छा लिखा लेकिन केवल लिखा है। उन लेखकों ने लिखकर समा नहीं बाँधा और हम लोग जो इधर बैठे हैं वो इस समां बाँधने के कारण जमा है। और यहीं पाठक साहब सबसे ऊपर हैं। उन्होंने निम्फोमैनियक का पहला वाक्य कहा, विमल के पहले उपन्यास में जैसा उसका चरित्र चित्रण किया है उसके विषय में बात की और उपन्यास के साइड किरदार जैसे तुकाराम के ऊपर बात की।

अब पुनीत भाई ने कहना शुरू किया। विमल ने जिसे अपने बाप सरीखा समझा है वो तुकाराम है। उन्होंने कहा कि वो तुकाराम के ऊपर बात करना चाहता हूँ। यहीं अल्मास भाई ने तुकाराम का वो डायलॉग सुनाया जो उसने विमल को प्रेरित करने के लिए सुनाया था। और इसके बाद वो अचानक गाना गाने लग गए और बात का रुख बदल गया।

अल्मास भाई का गाना खत्म हुआ तो पुनीत भाई ने संचालन की कमान अपने हाथ में ली और हर दिल अजीज योगी भाई को कुछ बोलने के लिए कहा। योगी भाई अक्सर मीट में चुपचाप रहते हैं। वो शर्माते हैं तो पूछने लगे कि क्या बोलूं। जब सबने दरख्वास्त की तो वो उठे और बोलना शुरू किया। उन्होने कहा अभी तो ऐसा लग रहा है जैसे ११८ बच्चों की क्लास में दोबारा से खड़ा हो रखा हूँ। इससे थोड़ा माहौल हल्का फुल्का हो गया। उन्होने कहा कि मैं आपकी बातों को आराम से सुन रहा है और समझ रहा हूँ। फिर उन्होंने तुकाराम और विमल के संवाद के विषय में कहा कि जब उसकी चर्चा हो रही थी तो मेरे दिमाग में वही सीन चल रहा था। इसके बाद उन्होंने बैठने की इजाजत ली।

फिर पुनीत भाई से गजल की फरमाईश की गयी। यहीं पर अल्मास भाई ने कहा कि वो गजल सुनाइए और ये कहकर खुद ही गाने लगे-'इश्क में हम तुम्हे क्या बताएं'। और इसके साथ सभी अपने अपने स्वरों में उनके साथ इस ग़ज़ल को गाने लगे।

सबके शांत होने के बाद पुनीत भाई ने बोलना शुरू किया। उन्होंने तो पहले मीट की व्यवस्था के विषय में कहा कि उम्मीद है आपको ये पसंद आया होगा। फिर उन्होंने राजीव रोशन जी के ऊपर बात की और उनके ग्रुप के तरफ उनके समपर्ण की तारीफ़ की। और इसलिए उनके लिए तालियाँ बजाने के लिए उन्होंने हमे कहा। और ये कहकर वो बैठ गए।

फिर उनसे दोबारा ग़ज़ल की फरमाइश की तो उन्होंने कहा कि मेरी ग़ज़ल तो आप लोग सुनते रहते हैं लेकिन हमारे बीच एक ऐसी प्रतिभा है जिनके विषय में आपने सुना भी न होगा। सभी हैरान थे कि ये कौन हैं? उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि राघवेन्द्र जी किशोर कुमार के बड़े फैन हैं और उनके गाने गाते हैं। हमे और क्या चाहिए था। हम लोगों ने उनसे किशोर दा जी का उनकी पसंद का कोई गाना सुनाने की दरख्वास्त की। और राघवेन्द्र जी ने भी किशोर दा का गाया हुआ गाना 'तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं शिकवा नहीं' गाकर मीट में समा बाँध दिया। गाना इतना अच्छा था कि आखिर तक आते आते सभी लोग उनके साथ गाने से अपने को न रोक सके। तालियों की गड़गड़ाट से राघवेन्द्र जी की प्रस्तुति का समापन हुआ।

यहीं पर अल्मास भाई ने कहा कि एक बेहतरीन प्रस्तुति को जवाब एक कमतर प्रस्तुति से देना चाहूँगा और इससे पहले कोई कुछ समझ पाता वो लड़की की आवज में गाने लगे: आँख सीधी लगी जैसे दिल पे लगी कटारिया ओ सांवरिया, (मर्दानी आवाज में) तेरी जुल्मी नजरिया, ले गयी मेरा दिल तेरी जुल्मी नजरिया। कुछ वक्त तक लोगों ने इस जुगलबंदी का मज़ा लिया जिसमे लड़के और लडकी दोनों की आवाजे में अल्मास भाई ने गाना गाया। सबने इसका आनंद लिया और मैं सोच रहा था कि अल्मास भाई एक डायरेक्शन लेस बन्दूक हैं जो किधर चल जाएँ पता नहीं लगता लेकिन जिधर भी चले उनके चलने से माहोल में अनेका अनेक रंग बिखरने लगते है।

ऐसे गायकों को देखकर नवल जी भी प्रेरित हुए और उन्होंने बब्बू मान का गाना गाने की इजाजत मांगी। अब बाकी लोगों को क्या दिक्कत होंनी थी। उनसे गाने की दरख्वास्त की गयी और उन्होंने बड़े खूबसूरती से पंजाबी का गाना--थोड़ी सोचा विच लंगी, थोड़ी वादे विच लंगी गाना शुरू किया और सबने उसका आनन्द लिया। नवल जी ने कहा कि इधर थोड़ा लोगों के बीच थोड़ा घबरा गया था तो इतना अच्छा नहीं हो सका। तो पुनीत भाई ने चुस्की लेते हुए कहा कि क्या बात करते हैं देखो आजादभारती जी साहब ने किसी के लिए ताली नहीं बजाई और आपके लिए बजाई। इस कमेंट के कारण एक बार फिर हँसी की लहर मीट में फूट गयी। मीट में ही क्यों व्हाट्सएप्प,फेसबुक  में भी ऐसी चुस्कियां अक्सर ली जाती हैं।  और यही तो मीट और ज़िन्दगी को खुशनुमा बनाती हैं, क्यों है न?

इसके बाद जिस घडी का इन्तजार था वो आई और पुनीत जी ने अपनी गजल सुनाई। इस बार उन्होंने 'आवारगी' के चंद टुकड़े सुनाकर सबको अपनी मखमली आवाज में बाँध दिया। लेकिन इतने से हमारा मन कहाँ भरना था तो उनसे कुछ और गाने के लिए कहा गया। उसके बाद उन्होंने 'हमको किसके गम ने मारा' गाया और मीट पर चार चाँद लगा दिया।

अभी तक स्टार्टर और ड्रिंक्स ही चल रहे थे तो इसके बाद पुनीत जी ने खाना लगाने के लिए कहा और खाना सर्व हुआ। अब सबने खाना खाने की तरफ तवज्जो दी। हल्की फुल्की बातचीत अभी भी चल रही थी लेकिन मुख्य ध्यान खाने के ऊपर ही था। पूरी मीट डेढ़ पौने दो घंटे चली थी जिसमे काफी मज़ा आया था। कुछ सार्थक चर्चा हुई थी, कुछ गरमा गर्मी हुई थी और कुछ हँसी मज़ाक हुआ था। माहौल खुशनुमा था और सबने इसे एन्जॉय किया होगा ऐसा मेरा मानना है, मैंने तो किया था। कुछ देर में सबने खाना पीना निपटाया।

खाना निपटने के बाद कुछ सबसे पहले अरविन्द जी और सिद्धार्थ जी की रुखसती हुई। राघवेन्द्र जी परिवार समेत घूमने आये थे और बगल वाले होटल में रुके थे तो वो भी चल दिए। शैलेश जी को भी सुबह निकलना था तो उन्होंने भी हमसे विदा ली।

अब हम बाकी लोग अपने कमरे में गये। हमारे एक  कमरा फर्स्ट फ्लोर में था और एक दो कमरे टॉप फ्लोर में। टॉप फ्लोर में जो कमरा था उसके विशेष बाथरूम से आपका पहले ही परिचय करवा चुका हूँ। हम सब वहीं एकत्रित हुए। उधर बैठे हुए थे कि हमे गर्मी लगने लगी। सब परेशान थे कि ऐसा क्यों हो रहा है। उसके बगल में जो हमारा कमरा था वो उसके मुकाबले ठंडा था। हम इसी नतीजे पर पहुंचे कि इस कमरे का एसी खराब है और इसकी शिकायत होटल प्रबन्धक से की। उसने शिकायत का संज्ञान लिया और एक नया कमरा (वो अलग बात है कि सुबह पता चला था कि नये कमरे का एसी भी बोल गया था)  आल्लोट किया। जब तक नया कमरा आल्लोट होता तब तक हमने सारा सामान उस कमरे में स्थानांतरित कर दिया जिसमे एसी चल रहा था। बाकी लोग उधर ही शिफ्ट हो गये। इन बाकी लोगों में अम्लास  भाई,पुनीत जी, अंकुर भाई, नवल जी, राजीव सिंह जी, योगी भाई और मैं थे। आज़ादभारती जी अपने कमरे में विश्राम करने के लिए चले गये थे। अभी पार्टी आगे बढ़नी थी। हम उस कमरे में बैठे थे और बातचीत चल रही थी। ज्यादातर लोग सुरूर में थे। मुझे और योगी भाई को नींद आ रही थी और हमारे चेहरे पे शायद ये दिख रहा था। पुनीत भाई ने हमसे कहा कि अगर हमे नींद आ रही है तो हम सोने चले जायें क्योंकि ये पार्टी तो लम्बी चलनी थी। तब तक दूसरा कमरा भी आल्लोट हो गया था। क्योंकि अब पीने वाले ही बचे थे तो और हमने तो पीनी नही थी तो पुनीत भाई ने बोला कि ये सही रहेगा कि हम आज़ादभारती जी के कमरे में जाकर सोयें। हमे भी ये बात जँची। मुझे व्यक्तिगत तौर पर पीने से इशू नहीं होता लेकिन अगर सिगरेट हो इशू होने लगता है। बाकी सारे सिगरेट वाले भी थे तो मेरी भलाई इसमें थी कि आज़ाद भारती जी वाले रूम में चले जाएँ।

हम उधर पहुंचे। हमने एक अतिरिक्त गद्दा मंगवाया। मेरा इस गद्दे में सोने का मन था क्योंकि एक व्यक्ति को बेड पे सोना था जिसमे आज़ादभारती जी पहले से ही सोये थे। मैं वो व्यक्ति नहीं होना चाहता था क्योंकि अक्सर बड़े बेड पर मैं सोते हुए विचरण करने लगता हूँ। मैंने ये बात योगी भाई को भी बतानी चाही लेकिन उन्होंने तब तक गद्दा हथिया लिया था। और उसे छोड़ने के मूड में नहीं थे। अब मुझे भी मन मारना पड़ा और बेड में सो गया। मन में एक ही विचार था कि बस सुबह तक एक ही पोजीशन में सोता रहूँ जो मेरे लिए जरा मुश्किल होता है। मुझे अगर बड़ा बेड मिले तो मैं सोते हुए उसमे घूमने लगता हूँ। कई बार जब उठता हूँ तो सर उससे विपरीत दिशा में होता है जिस दिशा में तब था जब सोना शुरू किया था।  इसलिए मैं थोड़ा संकोच के साथ सो रहा था। लेकिन दिन भर की थकान का नतीजा ये था कि कब नींद आ गयी पता ही नहीं लगा।

हम तो इधर सो गये थे लेकिन ऊपर के कमरों में पार्टी जारी थी। सुबह मुझे पता चला कि वो पार्टी सुबह के तीन चार बजे तक चली। बीच में  बाकी लोग एक गाड़ी में सवार होकर बाहर भी निकले। इसी सफ़र में तरंग में आकर एक ऑटो वाले भाई को रोकर उन्होंने किशोर दा का पूरा गाना भी सुनाया। और भी कई रोमांचक घटनाएं हुई लेकिन मैं चाहूँगा कि उनके विषय में जो लोग उसमे इन्वोल्व थे वो ही बात करें तो  बेहतर।

मेरे लिए तो रात बेड पर खत्म हो चुकी थी।

महफ़िल बेहतरीन हुई थी। मैंने काफी कुछ रिकॉर्ड भी किया था। ऑडियो तो अपने फोन पर कर रहा था क्योंकि मेरे फोन की बैटरी कम थी लेकिन शैलेश जी के फोन पर एक डेढ़ घंटे से ऊपर की विडियो रिकॉर्डिंग भी मैंने की थी। वो उनके पेज पर मौजूद है। जब मेरे हाथ थकने लगे तो योगी भाई ने कमरे के पीछे आकर रिकॉर्डिंग करी थी। काफी अच्छा अनुभव रहा। थोडा बहुत खींचा तानी हुई लेकिन फिर तरंग में लोग रहते हैं तो इतना तो होता ही है। दिन भर के भ्रमण और शाम की महफ़िल के बाद अब मुझे सुबह का इन्तजार था। मैं सुबह के लिए उत्सुक था और उसी का स्वप्न बुन रहा था।

(मैं जब भी साहित्यिक पत्रिका पढ़ता हूँ तो उसमे कई साहित्यिक संगोष्टियों के विषय में पढता। मेरे लिए शाम की ये महफ़िल भी किसी साहित्यिक संगोष्टी से कम नहीं थी तो सोचा क्यों न इसका विस्तृत वर्णन किया जाए और जरूरी बातों को इसमें रखा जाये। उम्मीद है ये कोशिश कामयाब रही होगी। काफी कुछ रह भी गया होगा लेकिन ज्यादातर इसमें जोड़ दिया है ऐसा मेरा मानना है। अगर फिर भी कहीं पर कोई गलती हो तो बताइयेगा जरूर। 

 इस संगोष्टी और इस सार्थक चर्चा के लिए मैं इस मीट में मौजूद हर एसएमपियन का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने अपने अनुभवों को हमारे साथ साझा कर हमारे जीवन को समृद्ध किया। उम्मीद है ऐसी संगोष्टिया हर मीट में होंगी और मैं ऐसे ही उन्हें दर्ज करता रहूँगा। )

सुबह क्या हुआ ये तो अगली कड़ी में बताऊँगा तब तक आप मीट की कुछ और झलकियों का आनन्द लीजिये:

चेहरे पे ख़ुशी तो देखो 

हीरा फेरी, पाठकनामा और केक

कुर्सियाँ ते मेजा, यारा नाल बहाराँ 



ये खजाना हम किसी को नहीं देंगे ठाकुर

सिद्धार्थ जी अपनी बातें रखते हुए 

शैलेश जी अपनी बात रखते हुए 

आज़ादभारती जी अपनी बात रखते हुए 
पुनीत भाई गज़ल सुनाते हुए 

नवल जी अपनी बात रखते हुए 

योगी भाई अपनी बात रखते हुए 

अरविन्द जी अपनी बात रखते हुए 

राघवेन्द्र जी अपनी बात रखते हुए 


चार बज गए और पार्टी अभी बाकी है 



क्रमशः
कानपुर मीट की बाकी कड़ियाँ :
कानपुर मीट #१:शुक्रवार - स्टेशन रे स्टेशन बहुते कंफ्यूज़न
कानपुर मीट #२: आ गये भैया कानपुर नगरीया
कानपुर मीट #3: होटल में पदार्पण, एसएमपियंस से भेंट और ब्रह्मावर्त घाट
कानपूर मीट #4
कानपुर मीट # 5 : शाम की महफ़िल

2 टिप्पणियाँ

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  1. बेहतरीन लिखा सर आपने। निकट भविष्य में मेरे आने की सम्भावना भी है। जल्द ही मुलाकात होगी।

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    1. शुक्रिया सुनीत, भाई। जरूर आपसे मिलने का इन्तजार रहेगा। ब्लॉग पर आकर टिपण्णी देने का शुक्रिया। आते रहियेगा।

      हटाएं

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