नियति

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मैं उठता हूँ,
उठकर खाता हूँ,
फिर जाता हूँ काम पर,
बेमन से उधर अपनी ज़िंदगी को करता हूँ बर्बाद,
कुछ सिक्को के खातिर,
फिर आता हूँ
फिर खाता हूं और सो जाता हूँ,
बस यही है मेरी दिनचर्या
और यही हूँ मैं
एक चक्र में फँसा हुआ,
खुद को लगातार खत्म होते देखता,
एक इनसान,
कुछ सपने हैं मेरे मगर उन्हें पूरे करने के चक्कर में,
उन्हें पूरा करना ही भूल जाता हूँ
शायद यही है मेरी नियति 
और शायद यही है मेरा जीवन

© विकास नैनवाल 'अंजान'

2 टिप्पणियाँ

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  1. कुछ सपने हैं मेरे मगर उन्हें पूरे करने के चक्कर में,
    उन्हें पूरा करना ही भूल जाता हूँ
    शायद यही है मेरी नियति ....,यथार्थ यही है सब के लिए ..., सुन्दर सृजन ।

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